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छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल | 11 | जांजगीर-चांपा जिला के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल | Archeology and tourist sites in Janjgir Champa District | Archeology and tourist sites in Chhattisgarh | Chhattisagadh Ke Puratatv Evan Paryatan Sthal | Janjgir Champa Ke Paryatan Sthal | CG Ke Puratatv | Paryatan Sthal | CG Vyapam | CG PSC |

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Archeology Nnd Tourist Sites In Chhattisgarh

Part (11)

छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल

 जांजगीर-चांपा जिला के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल

जिला जांजगीर-चांपा

जिले के बारे में

जिला जांजगीर-चांपा की स्थापना 25 मई 1998 को हुई थी। जिला जांजगीर-चांपा छत्तीसगढ राज्य के मध्य स्थित होने के कारण इसे छत्तीसगढ राज्य के हृदय के रूप में माना जाता है। जिला जांजगीर-चांपा के मुख्यालय जांजगीर कलचुरी वंश के महाराजा जाज्वल्य देव की नगरी है। जिला जांजगीर-चांपा छत्तीसगढ राज्य के प्रमुख अनाज उत्पादक जिलों में से एक है। यहां स्थित विष्णु मंदिर जांजगीर-चांपा जिलें के सुनहरे अतीत का प्रतीक है।विष्णु मंदिर वैष्णव समुदाय की प्राचीन कलात्मकता की परिचायक है। हसदेव परियोजना को जिला जांजगीर-चांपा के लिए जीवन वाहिनी के रूप में माना गया है। इस परियोजना के तहत जिले के तीन चौथाई क्षेत्र को सिंचित किया जा रहा है।

पर्यटन स्थल

  1. चंद्रहासिनी देवी मंदिर
  2. शिवरीनारायण
  3. लक्ष्मणेश्वर मंदिर
  4. मगरमच्छ संरक्षण केंद्र
  5. तुर्रीधाम (शिव मंदिर)
  6. विष्णु मंदिर
  7. अड़भार
  8. मदनपुरगढ़
  9. पीथमपुर (शिव मंदिर)
  10. घटादाई (पहरिया) (त्रिपुर सिंगर देवी)
  11. नहरिया बाबा
  12. दमाऊधारा
  13. देवर घटा

Archeology and tourist sites in Janjgir Champa District

चंद्रहासिनी देवी मंदिर

  • छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के डभरा तहसील में मांड नदी,लात नदी और महानदी के संगम पर स्थित चन्द्रपुर जहाँ माँ चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है।
  • महानदी और मांड नदी से घिरा चंद्रपुर, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत रायगढ़ से लगभग 32 कि.मी. और सारंगढ़ से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
  • कुछ ही दुरी (लगभग 1.5कि.मी.) पर माता नाथलदाई का मंदिर है जो की रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता है।
  • यह सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्ति पीठ है।
  • मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। 
  • चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से जानी जाती है।
  • लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए ज्योतिकलश नवरात्रि के अवसर पर जलाते हैं।
  • कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की बलि देते हैं।
  • यहाँ बने पौराणिक व धार्मिक कथाओं की झाकियां समुद्र मंथन, महाभारत की द्यूत क्रीड़ा आदि , मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।

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शिवरीनारायण

  • शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ में महानदी , शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम के तट पर स्थित प्राचीन एवं  विख्यात कस्बा है। 
  • यह क़स्बा जांजगीर-चाम्पा जिले में स्थित है। यह "छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी" के नाम से के नाम से भी जाना जाता है। इसे छत्तीसगढ़ का गुप्त प्रयाग भी कहते है।
इतिहास :
  • इस स्थान का वर्णन महाकाव्य रामायण में भी है। 
  • इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने शबरी नमक कोल आदिवासी महिला के जूठे बेर खाये थे। 
  • शबरी की स्मृति में शबरी-नारायण` नगर बसा है। 
  • यह स्थान बैकुंठपुर, रामपुर, विष्णुपुरी और नारायणपुर के नाम से विख्यात था।
    शिवरीनारायण स्थित शबरीनारायण मंदिर का निर्माण शबर राजा द्वारा कराया गया मानते हैं। 
  • यहाँ ईंट और पत्थर से बना 11-12  वीं सदी केशवनारायण मंदिर का मंदिर है। चेदि संवत् 919 का चंद्रचूड़ महादेवका एक प्राचीन मंदिर भी है।
  • महानदी के तट पर महेश्वर महादेव और कुलदेवी शीतला माता का भव्य मंदिर, बरमबाबा की मूर्ति और सुन्दर घाट है। 
  • जिसका निर्माण निर्माण संवत् 1890 में मालगुजार माखन साव के पिता श्री मयाराम साव और चाचा श्री मनसाराम और सरधाराम साव ने कराया है।
किंवदंती:
  • एक किंवदंती के अनुसार शिवरीनारायण के शबरीनारायण मंदिर और जांजगीर के विष्णु मंदिर में छैमासी रात में बनने की प्रतियोगिता थी। 
  • सूर्योदय के पहले शिवरीनारायण का मंदिर बनकर तैयार हो गया इसलिये भगवान नारायण उस मंदिर में विराजे और जांजगीर का मंदिर को अधूरा ही छोड़ दिया गया जो आज उसी रूप में स्थित है।
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लक्ष्मणेश्वर महादेव

  • लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 कि॰मी॰ तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से 5 कि॰मी॰ की दूरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है। 
  • यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। 
  • ऐसा माना जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात 'लक्ष्मणेश्वर महादेव' की स्थापना की थी।
  • मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 48 फुट ऊँचा और 30 फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। 
  • मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। 
  • चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। 
  • मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। 
  • सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं।
    मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 44 श्लोक है। 
  • चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। 
  • तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 
  • इससे पता चलता है कि मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इस आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं
    मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। 
  • इसी प्रकार दूसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरुष खुदे हैं। 
  • प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। 
  • लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है।

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मगरमच्छ संरक्षण केंद्र

  • भारत का एकमात्र मगरमच्छ संरक्षण केंद्र जहाँ प्राकृतिक रूप में रहते है मगरमच्छ|
  • छत्तीसगढ़ के मगरमच्छ संरक्षण आरक्षिती, कोटमीसोनार की झलकियाँ |
  • जिला जांजगीर-चांपा मुख्यालय से लगभग 35 कि.मी. दूर रेल मार्ग पर स्थित अकलतरा विकासखण्ड के ग्राम-कोटमीसोनार में एनर्जी पार्क, साइंस पार्क तथा प्रोजेक्टर युक्त आडिटोरियम पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
  • मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 6 मई 2006 को केंद्र का उद्घाटन किया था।

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तुर्रीधाम (शिव मंदिर)

  • तुर्रीधाम के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर भगवान शिव का है, प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिनों का मेला आयोजित किया जाता है।


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विष्णु मंदिर

  • 12वी सदी में हैह्य वंश के राजाओं के द्वारा विष्णु मंदिर का निर्माण कराया गया, जो कि वर्तमान में जॉजगीर की पुरानी बस्ती के भीमा तालाब के पास स्थित है। 
  • पूर्ण मंदिर बनाने के लिये इसे दो भागों मे निर्माण किया गया। लेकिन दोनों ही भाग को मिलाने का कार्य समय में पूर्ण नही हुआ था, इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों भाग आज भी अलग-अलग जमीन पर रखें है। 
  • अभी तक मंदिर पूर्ण नही हुआ है इसलिये यह स्थानीय लोगों के द्वारा नक्टा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
  • मंदिर के दीवारों में देवी-देवताओं की, गंधर्व और किन्नर प्रतिमा पर्यटकों को अपने ओर आकर्षित करती है।
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अड़भार

  • यह एक प्राचीन मंदिर है। जिसमें आठ हाथ वाली देवी विराजमान है। नवरात्रि के अवसर पर यहॉ ज्योति कलश जलाया जाता हैं।
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मदनपुरगढ़

  • तहसील जांजगीर  दूरी : 10 कि.मी.उत्तर पूर्व की ओर
  • यह मंदिर भी हसदेव नदी के तट पर स्थित हैं। यह एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है यहॉ नवरात्रि का त्यौहार पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता हैं।

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पीथमपुर के कालेश्वरनाथ

  • जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर जिला मुख्यालय से 10 कि. मी. और दक्षिण पूर्वी मध्य रेल्वे के चांपा जंक्शन से मात्र 8 कि. मी. की दूरी पर हसदेव नदी के दक्षिणी तट पर पीथमपुर में कालेश्वरनाथ का एक मंदिर है।
  •  जांजगीर के कवि श्री तुलाराम गोपाल ने ``िशवरीनारायण और सात देवालय`` में पीथमपुर को पौराणिक नगर माना है। 
  • प्रचलित किंवदंति को आधार मानकर उन्होंने लिखा है कि पौराणिक काल में धर्म वंश के राजा अंगराज के दुराचारी पुत्र राजा बेन प्रजा के उग्र संघर्ष में भागते हुए यहां आये और अंत में मारे गए। 
  • चूंकि राजा अंगराज बहुत ही सहिष्णु, दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति के थे अत: उनके पवित्र वंश की रक्षा करने के लिए उनके दुराचारी पुत्र राजा बेन के मृत शरीर की ऋषि-मुनियों ने इसी स्थान पर मंथन किया। 
  • पहले उसकी जांघ से कुरूप बौने पुरूष का जन्म हुआ। बाद में भुजाओं के मंथन से नर-नारी का एक जोड़ा निकला जिन्हें पृथु और अर्चि नाम दिया गया। 
  • ऋषि-मुनियों ने पृथु और अर्चि को पति-पत्नी के रूप में मान्यता देकर विदा किया। 
  • इधर बौने कुरूप पुरूष महादेव की तपस्या करने लगा। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव उन्हें दर्शन देकर पार्थिव लिंग की स्थापना और पूजा-अर्चना का विधान बताकर अंतध्र्यान हो गये। 
  • बौने कुरूप पुरूष ने जिस कालेश्वर पार्थिव लिग की स्थापना कर पूजा-अर्चना करके मुक्ति पायी थी वह काल के गर्त में समाकर अदृश्य हो गया था। 
  • वही कालान्तर में हीरासाय तेली को दर्शन देकर उन्हें न केवल पेट रोग से मुक्त किया बल्कि उसके वंशबेल को भी बढ़ाया। श्री  तुलसीराम पटेल द्वारा सन 1954 में प्रकािशत श्री कलेश्वर महात्म्य में हीरासाय के वंश का वर्णन हैं-
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 घटादाई (पहरिया) (त्रिपुर सिंघरदेवी)

  • तहसील : जांजगीर दूरी : 25 कि.मी. उत्तर की ओर यह त्रिपुर सिंघरदेवी का मंदिर जंगल और पहाड़ो से घिरा है। जो कि इसकी सुंदरता को बढ़ाता है।

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नहरिया बाबा मंदिर, जांजगीर-चांपा

  • नैला रेल्वे स्टेशन के समीप यह मंदिर पिछले कुछ समय से लोगों के आस्था का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है। 
  • यहा हनुमान जी की प्रतिमा है साथ ही साथ शनि देव, शीतला माता, शंकर, राम जानकी का भी मंदिर है।
  • छत्तीसगढ़ के हृदय में स्थित जंजगीर-चम्पा बहुत खूबसूरत स्‍थान है। यह अपने वैष्णव शैली में बने मन्दिरों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 
  • स्थानीय लोगों में यह मन्दिर बहुत लोकप्रिय हैं और वह इनके रख-रखाव का पूरा ध्यान रखते हैं। स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों को भी यह मन्दिर बहुत पसंद आते हैं और वह इन मन्दिरों के खूबसूरत दृश्य अपने कैमरों में कैद करके ले जाते हैं।

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दमाऊधारा

  • तहसील सक्ती दूरी 20 कि. मी. सक्ती से कोरबा के रास्ते में
  • यह स्थान पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं यहॉ एक ओर प्राकृतिक पानी का जल प्रपात, गुफाएॅ रामजानकी मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, ऋषभ देव मंदिर इत्यादि है।
  • इसके पास ही अन्य पर्यटन स्थलों पंचवटी, सीतामणी आदि आकर्षित करने वाले पर्यटन स्थल है।
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देवरघटा

  • तहसील  पामगढ़ दूरी  पामगढ़ से 22 कि. मी. दक्षिण पश्चिम की ओर
  • तीन नदियों महानदी, लीलागर एवं शिवनाथ के संगम स्थल जो कि पर्यटन स्थल के रूप में विकसित है।

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नोट - इस पेज पर आगे और भी जानकारियां अपडेट की जायेगी, उपरोक्त जानकारियों के संकलन में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि अथवा संदेह की स्थिति में स्वयं किताबों में खोजें तथा फ़ीडबैक/कमेंट के माध्यम से हमें भी सूचित करें।

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