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भारत के राष्ट्रपति | राष्ट्रपति का चुनाव | राष्ट्रपति की शक्तियाँ | bhaarat ke raashtrapati | President Of India | Election of President of India | bhaarat ke raashtrapati Gk

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एवं शक्तियाँ

 

राष्ट्रपति का चुनाव

  • भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अनुच्छेद 55 के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है।
  • राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। 

 

राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यताएँ :

  •   भारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वह पद का उम्मीदवार हो सकता है।

  •  राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए 

  •  सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण किया हुआ नहीं होना चाहिए। 

  •  परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है

  •  वर्तमान राष्ट्रपति

  • वर्तमान उपराष्ट्रपति

  • किसी भी राज्य के राज्यपाल

  • संघ या किसी राज्य के मंत्री।

  • राष्‍ट्रप‍ति के निर्वाचन सम्‍बन्‍धी किसी भी विवाद में निणर्य लेने का अधिकार उच्‍चतम न्‍यायालय को है।

   

 राष्ट्रपति पर महाभियोग

  • अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति मात्र महाभियोजित होता है, 

  • अन्य सभी पदाधिकारी पद से हटाये जाते हैं। 

  • महाभियोजन एक विधायिका सम्बन्धित कार्यवाही है 

  • जबकि पद से हटाना एक कार्यपालिका सम्बन्धित कार्यवाही है।

  •  महाभियोजन एक कड़ाई से पालित किया जाने वाला औपचारिक कृत्य है जो संविधान का उल्लघंन करने पर ही होता है। 

  • यह उल्लघंन एक राजानैतिक कृत्य है जिसका निर्धारण संसद करती है। 

  • वह तभी पद से हटेगा जब उसे संसद में प्रस्तुत किसी ऐसे प्रस्ताव से हटाया जाये जिसे प्रस्तुत करते समय सदन के 1/4 सदस्यों का समर्थन मिले। 

  • प्रस्ताव पारित करने से पूर्व उसको 14 दिन पहले नोटिस दिया जायेगा। 

  • प्रस्ताव सदन की कुल संख्या के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित होना चाहिये। 

  • फिर दूसरे सदन में जाने पर इस प्रस्ताव की जाँच एक समिति के द्वारा होगी।

  •  इस समय राष्ट्रपति अपना पक्ष स्वंय अथवा वकील के माध्यम से रख सकता है।

  •  दूसरा सदन भी उसे उसी 2/3 बहुमत से पारित करेगा। 

  • दूसरे सदन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के दिन से राष्ट्रपति पद से हट जायेगा।

    

राष्ट्रपति की शक्तियाँ

 न्यायिक शक्तियाँ

  • संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है।
  • क्षमादान – किसी व्यक्ति को मिली संपूर्ण सजा तथा दोष सिद्धि और उत्पन्न हुई निर्योज्ञताओं को समाप्त कर देना तथा उसे उस स्थिति में रख देना मानो उसने कोई अपराध किया ही नहीं था। यह लाभ पूर्णतः अथवा अंशतः मिलता है तथा सजा देने के बाद अथवा उससे पहले भी मिल सकती है।
  • लघुकरण – दंड की प्रकृति कठोर से हटा कर नम्र कर देना उदाहरणार्थ सश्रम कारावास को सामान्य कारावास में बदल देना
  • परिहार – दंड की अवधि घटा देना परंतु उस की प्रकृति नहीं बदली जायेगी
  •  विराम – दंड में कमी ला देना यह विशेष आधार पर मिलती है जैसे गर्भवती महिला की सजा में कमी लाना
  •  प्रविलंबन – दंड प्रदान करने में विलम्ब करना विशेषकर मृत्यु दंड के मामलों में

राष्ट्रपति की क्षमाकारी शक्तियां पूर्णतः 

  • उसकी इच्छा पर निर्भर करती हैं। उन्हें एक अधिकार के रूप में  मांगा नहीं जा सकता है। 
  • ये शक्तियां कार्यपालिका प्रकृति की है तथा राष्ट्रपति इनका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह  पर करेगा। 
  • न्यायालय में इनको चुनौती दी जा सकती है। 
  • इनका लक्ष्य दंड देने में हुई भूल का निराकरण करना है जो न्यायपालिका ने कर दी हो।

  • शेरसिंह बनाम पंजाब राज्य 1983 में सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया की अनु 72, अनु 161 के अंतर्गत दी गई दया याचिका जितनी शीघ्रता से हो सके उतनी जल्दी निपटा दी जाये। 
  • राष्ट्रपति न्यायिक कार्यवाही तथा न्यायिक निर्णय को नहीं बदलेगा वह केवल न्यायिक निर्णय से राहत देगा याचिकाकर्ता को यह भी अधिकार नहीं होगा कि वह सुनवाई के लिये राष्ट्रपति के समक्ष उपस्थित हो

    

 वीटो शक्तियाँ


     विधायिका की किसी कार्यवाही को विधि बनने से रोकने की शक्ति वीटो शक्ति कहलाती है संविधान राष्ट्रपति को तीन प्रकार के वीटो देता है।
  1. पूर्ण वीटो – 

     निर्धारित प्रकिया से पास बिल जब राष्ट्रपति के पास आये (संविधान संशोधन बिल के अतिरिक्त) तो वह् अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति की घोषणा कर सकता है किंतु यदि अनु 368 (सविधान संशोधन) के अंतर्गत कोई बिल आये तो वह अपनी अस्वीकृति नहीं दे सकता है। यद्यपि भारत में अब तक राष्ट्रपति ने इस वीटो का प्रयोग बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के नहीं किया है माना जाता है कि वह ऐसा कर भी नहीं सकता (ब्रिटेन में यही पंरपंरा है जिसका अनुसरण भारत में किया गया है)।
  2. निलम्बनकारी वीटो – 

     संविधान संशोधन अथवा धन बिल के अतिरिक्त राष्ट्रपति को भेजा गया कोई भी बिल वह संसद को पुर्नविचार हेतु वापिस भेज सकता है किंतु संसद यदि इस बिल को पुनः पास कर के भेज दे तो उसके पास सिवाय इसके कोई विकल्प नहीं है कि उस बिल को स्वीकृति दे दे। इस वीटो को वह अपने विवेकाधिकार से प्रयोग लेगा। इस वीटो का प्रयोग अभी तक संसद सदस्यों के वेतन बिल भत्ते तथा पेंशन नियम संशोधन 1991 में किया गया था। यह एक वित्तीय बिल था। राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण ने इस वीटो का प्रयोग इस आधार पर किया कि यह बिल लोकसभा में बिना उनकी अनुमति के लाया गया था।
  3. पॉकेट वीटो –

     संविधान राष्ट्रपति को स्वीकृति अस्वीकृति देने के लिये कोई समय सीमा नहीं देता है यदि राष्ट्रपति किसी बिल पर कोई निर्णय ना दे (सामान्य बिल, न कि धन या संविधान संशोधन) तो माना जायेगा कि उस ने अपने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है यह भी उसकी विवेकाधिकार शक्ति के अन्दर आता है। पेप्सू बिल 1956 तथा भारतीय डाक बिल 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस वीटो का प्रयोग किया था।
     

राष्ट्रपति की संसदीय शक्ति

     राष्ट्रपति संसद का अंग है। कोई भी बिल बिना उसकी स्वीकृति के पास नहीं हो सकता अथवा सदन में ही नहीं लाया जा सकता है।
    

 राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ    

  1. अनु 74 के अनुसार
  2. अनु 78 के अनुसार प्रधान मंत्री राष्ट्रपति को समय समय पर मिल कर राज्य के मामलों तथा भावी विधेयकों के बारे में सूचना देगा, इस तरह अनु 78 के अनुसार राष्ट्रपति सूचना प्राप्ति का अधिकार रखता है यह अनु प्रधान मंत्री पर एक संवैधानिक उत्तरदायित्व रखता है यह अधिकार राष्ट्रपति कभी भी प्रयोग ला सकता है इसके माध्यम से वह मंत्री परिषद को विधेयकों निर्णयों के परिणामों की चेतावनी दे सकता है
  3. जब कोई राजनैतिक दल लोकसभा में बहुमत नहीं पा सके तब वह अपने विवेकानुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा
  4.  निलंबन वीटो/पॉकेट वीटो भी विवेकी शक्ति है
  5.  संसद के सदनो को बैठक हेतु बुलाना    
  6. अनु 75 (3) मंत्री परिषद के सम्मिलित उत्तरदायित्व का प्रतिपादन करता है राष्ट्रपति मंत्री परिषद को किसी निर्णय पर जो कि एक मंत्री ने व्यक्तिगत रूप से लिया था पर सम्मिलित रूप से विचार करने को कह सकता है
  7. लोकसभा का विघटन यदि मंत्रीपरिषद को बहुमत प्राप्त नहीं है तो लोकसभा का विघटन उसकी विवेक शक्ति के दायरे में आ जाता है
  8. किसी कार्यवाहक सरकार के पास लोकसभा का बहुमत नहीं होता इस प्रकार की सरकार मात्र सामन्य निर्णय ही ले सकती है ना कि महत्वपूर्ण निर्णय। यह राष्ट्रपति निर्धारित करेगा कि निर्णय किस प्रकृति का है


संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति की स्थिति

  • रामजस कपूर वाद तथा शेर सिंह वाद में निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसदीय सरकार में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद में है। 
  • 42, 44 वें संशोधन से पूर्व अनु 74 का पाठ था कि एक मंत्रिपरिषद प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में होगी जो कि राष्ट्रपति को सलाह सहायता देगी। 
  • इस अनुच्छेद में यह नहीं कहा गया था कि वह इस सलाह को मानने हेतु बाध्य होगा या नही। 
  • केवल अंग्रेजी पंरपरा के अनुसार माना जाता था कि वह बाध्य है। 
  • 42 वे संशोधन द्वारा अनु 74 का पाठ बदल दिया गया राष्ट्रपति सलाह के अनुरूप काम करने को बाध्य माना गया। 
  • 44वें संशोधन द्वारा अनु 74 में फिर बदलाव किया गया। अब राष्ट्रपति दी गयी सलाह को पुर्नविचार हेतु लौटा सकता है किंतु उसे उस सलाह के अनुरूप काम करना होगा जो उसे दूसरी बार मिली हो।
  

 राष्ट्रपति के कार्य तथा शक्तियाँ 

  1.  संसद का अधिवेशन बुलाना –(राष्ट्रपति के कार्य तथा शक्तियाँ)  संसद के दोनों सदनों में किसी विधेयक के ऊपर विवाद होने कारण राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है और हर साल संसद के पहले अधिवेशन में दोनों सदनों को सम्बोधित करता है l

  2. सदस्यों को मनोनीत करना –राष्ट्रपति को राज्यसभा में ऐसे 12 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है जिन्होंने कला , साहित्य , विज्ञान , आदि के छेत्र में विशेष योगदान दिया हो राष्ट्रपति लोकसभा में दो एंग्लो इण्डियन समुदाय के लोगो को भी मनोनीत कर सकता है यदि इस समुदाय के लोगो को लोकसभा में प्रयाप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है 

  3. अध्यादेश जारी करना – यदि किसी स्थिति की वजह से संसद नहीं चल रही हो और तत्काल कानून की आवश्यकता हो तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है l यह अध्यादेश संसद द्वारा बनाए गए कानून के समान होता है संसद का अधिवेशन शुरू होने के बाद यह अध्यादेश 6 माह 6 सप्ताह तक प्रभावी रह सकता है यदि संसद चाहे तो इन्हें स्थायी कानून भी बना सकती है तथा इस अध्यादेश को अवधि से पूर्व समाप्त कर सकती है 6 माह की अवधि के बाद यह अध्यादेश स्वतः समाप्त हो जाते है।

  4. सेना सम्बन्धी शक्तियाँ –  (भारत का राष्ट्रपति) राष्ट्रपति जल , थल , और वायु तीनो सेनाओ का सर्वोच्च सेनापति होता है वह युद्ध तथा शांति की घोषणा करता है। 

  5.   न्यायिक शक्तियाँ – सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है यदि किसी व्यक्ति को अदालत से सजा हो गयी हो तो वह व्यक्ति क्षमादान , सजा को कम करने या उसमें परिवर्तन करने के लिए राष्ट्रपति से अपील कर सकता है राष्ट्रपति मृत्युदण्ड प्राप्त अपराधी को क्षमादान दे सकता है।

  6.  प्रदेशो के शासन पर नियन्त्रण – राष्ट्रपति प्रदेशो के शासन को भी देखता है वह देखता है की उनका शासन संविधान के अनुसार संचालित हो यदि किसी प्रदेश में शासन तन्त्र विफल हो जाता है तो वह राज्यपाल द्वारा रिपोर्ट मँगवाकर वहां राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है।

  7. पदाधिकारियों की नियुक्ति करना –राष्ट्रपति भारत के सभी महत्वपूर्ण अधिकारियो जैसे बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री , सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायधीशो , संघ लोक सेवा के अध्यक्ष और सदस्यों, प्रदेशो के राज्यपाल, विदेशो में भारत के राजदूतो , महान्यायवादी , नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ,मुख्य चुनाव आयुक्त और मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्तियां राष्ट्रपति करता है।

  8.  वित्तीय अधिकार – बजट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करवाने का कार्य राष्ट्रपति ही करता है केंद्र तथा प्रदेशो के मध्य आय के विवरण का अधिकार भी राष्ट्रपति को ही होता है राष्ट्रपति सरकार को ज़रूरत पड़ने पर संसद से मंज़ूर किये बिना आकस्मिक निधि से धन दे सकता है लोकसभा में वित्त विधेयक राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बिना पेश नहीं किये जा सकते है।

  9.  कानून सम्बन्धी शक्तियाँ – संसद द्वारा बनाए गए कोई भी विधेयक कानून का रूप नहीं ले सकता जब तक राष्ट्रपति उसे अपनी मंज़ूरी नहीं दे देता राष्ट्रपति साधारण विधेयक को अस्वीकार या अपने सुझावों के साथ बिल को वापिस संसद को विचार के लिए लौटा सकता है यदि संसद बिना कोई परिवर्तन करे या राष्ट्रपति के सुझावों को मान कर दुबारा राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजती है तो तब राष्ट्रपति को मंज़ूरी देनी ही होती है।

  10.  संकटकालीन शक्तियाँ –

    • युद्ध , आक्रमण या आन्तरिक सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति देश में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है।
    •  यदि प्रदेशो में संवेधानिक तन्त्र विफल हो जाता है तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागु कर सकता है।
    • यदि राष्ट्र में कोई ऐसा वित्तीय संकट आ खड़ा हो तो राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद360 के तहत राष्ट्रपति शासन लागु कर सकता है।
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Read--भारतीय संविधान का मौलिक कर्तव्य

Read--भारतीय संबिधान के मौलिक अधिकार

 

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जय हिन्द  जय भारत

 

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