छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल
Part (5)
Archeology and tourist sites in Chhattisgarh
कबीरधाम जिले (Kabiradham district)
कबीरधाम जिले का जिला मुख्यालय कवर्धा है। इस नगर की स्थापना छत्तीगसढ़ में कबीर पंथ के आठवे गुरू हकनाम साहब जो वास्तुविद थे, ने घने वनों को कटवाकर की थी। कवर्धा प्राचीन रियासत रही। प्राचीनकाल में कवर्धा में फणीनागवंशीय राजाओं ने शासन किया। मड़वा महल अभिलेख से पता चलता है कि इस वंश का संस्थापक अहिराज था।
जिले के बारे में
जिला कबीरधाम सकरी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक शांतिपूर्ण और
आकर्षक स्थान है। कबीर साहिब के आगमन और उनके शिष्य धर्मदास के वंशज की
गददी स्थापना के कारण इसका नाम कबीरधाम था। जो कबीरधाम के रूप में जाना
जाता है।
जिला मुख्यालय से लगभग 17 किमी भोरमदेव ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यह जगह 9वीं सदी से 14 वीं शताब्दी तक नागवंशी राजाओं की राजधानी थी। उसके बाद यह क्षेत्र राज्य के रतनपुर से संबंधित थे, जो हैहायवंशी राजा के कब्जे में आया। मंदिरों के पुरातात्विक अवशेष और इन राजाओं द्वारा बनाए गए पुराने किले अभी भी उपलब्ध हैं।
जिला मुख्यालय से लगभग 17 किमी भोरमदेव ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यह जगह 9वीं सदी से 14 वीं शताब्दी तक नागवंशी राजाओं की राजधानी थी। उसके बाद यह क्षेत्र राज्य के रतनपुर से संबंधित थे, जो हैहायवंशी राजा के कब्जे में आया। मंदिरों के पुरातात्विक अवशेष और इन राजाओं द्वारा बनाए गए पुराने किले अभी भी उपलब्ध हैं।
पर्यटन एवं पुरातात्विक स्थल
कबीरधाम जिले में पर्यटन की असीम संभावनाएं है। विभिन्न प्राकृतिक एवं रमणीय स्थलों के साथ-साथ पुरातात्विक धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल भी आकर्षण का केन्द्र हैं। प्रसिद्ध धार्मिक भोरमदेव शिव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से ख्याति प्राप्त है।
प्रकृति के गोद में बसे चिल्फी घाटी भी पर्यटन की दृष्टि से जिले का प्रमुख केन्द्र है। इसके अलावा भोरमदेव अभ्यारण ,बकेला पचराही जैन तीर्थ , रानिदाहरा जल प्रपात , सरोधा जलाशय ,वृन्दावन उद्यान भी जिले में विद्यमान है।
- भोरम देव मंदिर
- बुढा महादेव मंदिर
- सरोधा बाँध
- वृन्दावन उद्यान
- चिल्फी घाटी
- रानी दहरा जल प्रपात
- पीढ़ाघाट
भोरमदेव मंदिर, कवर्धा
- भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
- मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था।
- यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।
- मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है।
- मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है।
- तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है।
- मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।
मड़वा महल
- भोरमदेव मंदिर से 1 किमी. पहले छपरी ग्राम के निकट मड़वा महल स्थित है।
- इसका निर्माण फणीनागवंशीय राजा रामचंद्रदेव में चैदहवीं शताब्दी में कलचुरि राजकुमारी अंबिकादेवी से अपने विवाह के उपलक्ष्य में करवाया था।
छेरकी महल
- मड़वा महल से एक किमी. दक्षिण की तरह छेरकी महल है। यह एक छोटा मंदिर हैं, जहाॅं बकरी की गंध फैली रहती है।
बदरगढ
- मैकल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी लीलावानी है। जो मध्यप्रदेश में है किन्तु छत्तीसगढ़ में मैकल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी बदरगढ़ है और 1176 मीटर इसकी ऊंचाई है।
सरोंदा प्वांट
- कवर्धा जिले के मध्य-पश्चिम मध्य प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में चिल्फीघाटी स्थित है।
- यहाॅं से राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 गुजरता है। चिल्फी में ही सरोंदा प्वांइट है, जो सनसेट और सनराइजिंग प्वांइट के नाम से जाना जाता है।
भोरमदेव अभ्यारण
- भोरमदेव अभयारण्य मैकल की हरियर वादियों में फैला हुआ है। 352 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में विस्तारित यह अभ्यारण अपने में अनेक प्राकृतिक एवं प्रागैतिहासिक विशेषताओं को समेटे हुए है।
- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार टाइगररिजर्व दोनों के संरक्षण को भी सम्पूर्ण प्रदान करता है |
- भोरमदेव अभयारण्य वर्ष 2001 में अधिसूचना हुआ। तब नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था।
- चिल्फी घाटी के साथ ही कान्हा नेशनल पार्क का भी एक बढ़ा बफर जोन नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में आ गया।
- चूँकि भोरमदेव और चिल्फी का यह क्षेत्रकान्हा नेशनल पार्क और अचानकमार के बीच पहले से ही एक कारीडोर के रूप में था।
- वन्यप्राणी की आवाजाही इधर से ही होती रही है। इसलिए वन्य प्राणियों की प्रजातियों में भी स्वाभाविक रूप से समानता पायी जाती है। इसका नामकरण भी यहाँ छत्तीसगढ़ का खजुराहो नाम से प्रतिष्टित भोरमदेव मंदिर के नाम पर ही अधिसूचित किया गया ।
- भोरमदेव मंदिर अभयारण्य का विस्तार 800 53′ पूर्वी अक्षांश से 810 10′ अक्षांश और 210 54′ उत्तरी देशान्तर से 220 15′ के बीच है।
- उत्तर में इसका विस्तार डिंडौरी जिला की दक्षिणी सीमा तक है तो दक्षिण में मण्डलाकोंन्हा गाँव की उत्तरी सीमाओं को छूती है।
- इसीतरह पालक गाँव से छपरी गाँव की पश्चिमी सीमा अभ्यारण्य की पूर्वी सीमा होती है, तो पश्चिम में यह अभयारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की पूर्वी सीमा पर स्थित बालाघाट जिले के पाचवा गाँव तक विस्तारित है।
रानी दहरा जलप्रपात कबीरधाम
- रानी दहरा जलप्रपात छत्तीसगढ़ राज्य में कबीरधाम ज़िला मुख्यालय से जबलपुर मार्ग पर करीब 35 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
- ये कबीरधाम के बोड़ला तहसील से 15 किलोमीटर दूर है|
- यह जलप्रपात भोरमदेव अभयारण्य के अंतर्गत आता है।
- रियासत काल में यह मनोरम स्थल राजपरिवार के लोगों का प्रमुख मनोरंजन स्थल हुआ करता था।
- रानी दहरा मैकल पर्वत के आगोस में स्थित है।
- तीनों ओर पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर करीब 90 फुट की ऊंचाई पर स्थित जलप्रपात बर्बस ही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है
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पचराही (कवर्धा)
- पचराही का प्राचीन नाम कंकालिन टीला है जिसकी खोज पाॅजीटर महोदय नें की थी।
- यह हाप नदी के किनारे है। पचराही वर्तमान में कवर्धा जिले के बोडला तहसील से 27 किमी. उत्तर में स्थित है।
- मैकल पर्वत की उपत्यका में स्थित है। सुप्रसिद्ध पुरातात्विक वेत्ता अरूण शर्मा के नेतृत्व में उत्खनन किया जा रहा है।
- उत्खनन से यहाॅं पर प्राचीन महल के प्रमाण तथा अनेकों मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- लगभग 2000 वर्ष पूर्व साल पहले पचराही एक प्रमुख नगर था। यहाॅं प्राचीनतम मोहर और सिक्के प्राप्त हुए हैं।
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