
छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल
Part (8)
Archeology and tourist sites in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ प्रकृति की गोद में बसा हुआ है इस कारण छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सुंदरता से भरा पड़ा है। यह राज्य देश का हृदय स्थल होने के कारण यह अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों से परिपूर्ण है। यहां अनेक धर्म सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई है एवं उनकी प्रचार स्थली है। पर्यटन की दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ राज्य के छोटे-बड़े लगभग 105 स्थान, पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हांकित किए गए हैं। छत्तीसगढ़ में पर्यटन को बढ़ावा देने के उददेश्य से 2002 में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल(Chhattisgarh Tourism Board) का गठन किया गया है। छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का उद्देश्य है कि राज्य को एक अंतर्राष्ट्रीयस्तर के पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करना तथा राज्य की सांस्कृतिक धरोवर को संरक्षितव समृद्धि करना।
Archeology and tourist sites In Raigarh Dristrict
जिले के बारे में
रायगढ़ जिला के उत्तर में जशपुर जिला, दक्षिण में महासमुन्द जिला तथा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व तक उडिसा राज्य की सरहद से 6527.44 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला रायगढ़ जिला उत्तरी क्षेत्र जहां बिहड़, जंगल, पहाडियो से आच्छादित है। वही इसका दक्षिण हिस्सा ठेठ मैदानी है। जिले की बहुसंख्यक आबादी गांवो में निवास करते है। विरहोर इस जिले के विशिष्ट जनजाति है, जो धरमजयगढ़ क्षेत्र में निवास करते है। गोंड, कंवर, उरांव अन्य प्रमुख जनजातियों की सूची में शामिल है।
जिले में प्रमुख पर्यटन स्थल नीचे दर्शित है:
- राम झरना
- गोमर्डा अभयारण्य
- गौरीशंकर मंदी
- श्याम मंदिर
- पहाड़ मंदिर
- कमला नेहरु पार्क
- हरीतिमा
- इंदिरा विहार
राम झरना
रायगढ़ के प्राचीन दर्शनिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में पहचान बना चुका
रामझरना अब अपने नये कलेवर के साथ लोक लुभावन दृश्यों से पर्यटकों को
आकर्षित कर रहा है मान्यता है कि यहांं पर वनवास के समय प्रभु राम का
पदापर्ण हुआ था। वर्तमान में यह स्थल जिले के पिकनिक स्पाट के साथ-साथ
राज्य के अन्य जिलों व उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के आकर्षण का
केन्द्र बना हुआ है।
- शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित खरसिया ब्लाक के रामझरना (भूपदेवपुर) जिले के दर्शानिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है जहां हर वर्ष जिले सहित आसपास के जांजगीर, बिलासपुर, अंबिकापुर, जशपुर, महासमुंद व उड़ीसा के बरगढ़, झारसुगड़ा, बलागीर के हजारों लोग भ्रमण करने आते है।
- रामझरना में जब से सहायक परिक्षेत्र अधिकारी एल.एन.जायसवाल ने कार्यभार सम्हाला है तब से यह स्थान व्यवस्थित व सुदृढ हुआ है और आगंतुको को परिवारिक वातावरण मिलने के कारण यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
- करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बसे रामझरना का आकर्षण मुख्य द्वार से लंबा रास्ता होते हुए घने जंगल के अंदर में प्राकृतिक रूप से बना जल कुंड है जहां से अनवरत जल बह रहा है पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्री राम 14 वर्ष के वनवास के समय पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ यहां आये थे तब सीता माता को प्यास लगी और भगवान श्रीराम ने बाण से धरती पर छेद किया और धरती माता ने भी अपनी पुत्री की प्यास बुझाने के लिये अपने गोद से जल की धारा बहाई थी।
- तब से यहां प्राकृतिक कुंड के रूप में पानी अनवरत् निकल रही है।
- बताया जाता है कि यहां का पानी पीने से शरीर का आंतरिक व बह्य रोग से लोगों को मुक्ति मिलती है जिससे आने वाले पर्यटक तथा बीमार लोग पीने के लिये पानी ले जाते है पूरे अंचल में इस प्राकृतिक जल धारा से निकले पानी को पवित्र और सबसे शुद्ध माना जाता है।
- जल कुंड से निकलने वाला पानी आगे चलकर बड़े जलाशय में समाहित हो जाता है जिससे प्रतिवर्ष सैकड़ों एकड़ खेतों की सिंचाई के लिये पानी भी उपलब्ध होती है।

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गोमरदा पशु अभयारण्य (Gomarda Wildlife Sanctuary)
- यहा दुर्लभ प्रजातियों की संख्या के प्राकृतिक वास है और यह विदेशी स्थानों में से एक है।
- छत्तीसगढ़ में वन्यजीव अभयारण्यों, जो बीच में उल्लेख गोमरदा वन्यजीव अभयारण्य, छत्तीसगढ़ का एक बहूत ही प्रसिद्ध स्थल है।
- भारत के छत्तीसगढ़ राज्य मे गोमरदा में वन्यजीव अभयारण्य रायगढ़ जिले में स्थित है।
- यह सारंगढ़ के पास स्थित है। क्षेत्र में पहाड़ी क्षेत्रों की एक बहुत विशाल आकर्षण का केंद्र है।
- 275 वर्ग किमी में फैले यह एक साहसिक चाहने वालों के लिए आदर्श गंतव्य के है।
- छत्तीसगढ़ के गोमरदा वन्यजीव अभयारण्य में जंगली जानवरों की विभिन्न किस्मों है। और यहा जानवरो की आम प्रजाति भी देखने को मिल जाएगी। उनमें से कुछ हिरण और चिंकारा हैं। और यह पर्यटकों जगह का भी अच्छा केंद्र है।
- यहा जंगली भैंसे जो झुंड में चलते हैं और इनका एक सुंदर दृश्य भी आप को यहा देखने को मिले गा।
- अगर आप भाग्यशाली हैं तो आप भी यहा पहाड़ी मैना का एक सुंदर दृश्य देख सकते है।
- टाईगर्स तेंदुए भी यहाँ आप को देखने को मिलेंगे लेकिन अब वे शायद ही कभी कम आप को दिखाई दे।
- गोमरदा वन्यजीव अभयारण्य नीलगिरि की तरह अन्य प्रजातियों, सांभर, गौर्स, बार्किंग डीयर, नवसिंघा, आलसी भालू, जंगली सूअर, ढोल या जंगली कुत्ते और लोमड़ी का निवास है।
- यहा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां भी देखने को भी मिलेगी जैसे कुछ किस्मों के मयूर, जंगल उल्लू , ग्रीन कबूतर, कोयल, तोते और स्टॉर्क ये सब देखने को मिलेंगे।
- गोमरदा वन्यजीव अभयारण्य, छत्तीसगढ़ के सभी कोनों से पहुँचा जा सकता है। वहाँ अच्छे होटल भी है जो कला से भरे और अच्छी सुविधा के साथ है।

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गौरीशंकर मंदिर
- गौरीशंकर मंदिर, श्याम मंदिर, पहाड़ मंदिर (रायगढ़ में स्थित है|)
- बंजारी मंदिर, रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 20 KM की दुरी पर स्थित है|
- चंद्रहासिनी मंदिर, रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 30 KM की दुरी पर, चंद्रपुर (जिला – जांजगीर-चाम्पा) में स्थित है|

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पार्क
- कमला नेहरु पार्क, हरीतिमा, इंदिरा विहार
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चक्रधर समारोह
भारत में गणेश पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, रायगढ़ के लिए गणेश पूजा विशेष महत्व का उत्सव है और पुरे दस दिनों तक यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| राजा चक्रधर सिंह ने गणेश पूजा के दौरान रायगढ़ में विभिन्न प्रकार की संगीत, साहित्य एवं खेलो का आयोजन कराया था जो कि निरंतर जारी है और अभी भी हर वर्ष संगीत, साहित्य एवं खेलो का आयोजन किया जाता है| इस आयोजन को उन्ही के सम्मान में चक्रधर समारोह का नाम दिया गया है| चक्रधर समारोह में देश – विदेश के ख्याति प्राप्त संगीतकार, साहित्यकार एवं खिलाडी सिरकत करते है और चक्रधर समारोह की ख्याति पुरे देश में है|
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संस्कृति और विरासत
रायगढ़ “छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक नगरी” के नाम से प्रसिद्ध है| रायगढ़ अपनी कथक नृत्य विधा (रायगढ़ घराना) एवं शास्त्रीय संगीत के लिए प्रसिद्ध है| राजा चक्रधर सिंह ने गणेश पूजा के दौरान रायगढ़ में विभिन्न प्रकार की संगीत, साहित्य एवं खेलो का आयोजन कराया था जो कि निरंतर जारी है और अभी भी हर वर्ष संगीत, साहित्य एवं खेलो का आयोजन किया जाता है| इस आयोजन को उन्ही के सम्मान में चक्रधर समारोह का नाम दिया गया है| चक्रधर समारोह में देश – विदेश के ख्याति प्राप्त संगीतकार, साहित्यकार एवं खिलाडी सिरकत करते है और चक्रधर समारोह की ख्याति पुरे देश में है|
- रायगढ़ जिला ढोकरा आर्ट के लिए प्रसिद्ध है| यह आर्ट रायगढ़ जिले के झारा आदिवासी समुदाय में बहुत प्रचलित है| इस आर्ट में बेल, ब्रास और ब्रांज मेटल से मोम का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के कलाकृतियों का निर्माण किया जाता है|
करमागढ़ -
रायगढ़ से 30 किमी. दूर उत्तर-पूर्व में करमागढ़ पहाड़ है। करमागढ़ के पहाडि़यों में 300 से अधिक शैल चित्र मिले हैं। यहाॅ। के शैल चित्रों में कोई भी मानव आकृति का अंकन नहीं। इन शैल चित्रों में मेढ़क, मछली, साॅंप,कछुआ, छिपकली, जंगली सूअर, गोह, तथा लता पुष्प से युक्त कुंज जिसमें तितलियों का अंकन है। इसके अलावा जलसरोवर और कमल का चित्र बना हुआ है।
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कबरा पहाड़ गुफा
- आदिमानव उस समय जो भी देखते थे को उन गुफाओं में चित्रकारी कर अंकित किया करते थे, जिन्हें रॉक पेंटिंग (शैल चित्र) कहा जाता है।
- प्रागैतिहासिक काल के मानव सभ्यता के उषाकाल में छत्तीसगढ़ भी आदिमानवों के संचरण तथा निवास का स्थान रहा हैं।
- कबरा पहाड़ के शैलाश्रय पुरातात्विक स्थल है। मैंने गुफा में लगभग 2000 फ़ीट की खड़ी चढाई चढ़कर ऊपर तक जाकर देखा है। जो रायगढ़ से 8 कि.मी. पूर्व में ग्राम विश्वनाथपाली तथा भद्रपाली के निकट की पहाड़ी में स्थित है।
- उस समय यह पहाड़ घनी झाड़ियों , वृक्षों से घिरा हुआ दुर्गम था , तथा वहा तक पहुचने के लिए हमे काफी चलना पड़ा था. रस्ते में अनेको सर्प तथा अन्य जीव-जंतु भी नज़र आये थे।
- कबरा शैलाश्रय के चित्र भी गहरे लाल खड़िया, गेरू रंग में अंकित है। इसमें कछुआ, अश्व व हिरणों की आकृतियां है। इसी शैलाश्रय में जिले का अब तक का ज्ञात वन्य पशु जंगली भैसा का विशालतम शैलचित्र है। इसका मतलब यह है की ये जानवर उस समय वहां पर अधिक पाए जाते थे।
- कबरा शैलाश्रय के चित्रों में रेखांकन का सौंदर्य जिले के अन्य सभी शैलचित्रों से अच्छा बताया जाता है।
- इसके साथ ही मध्य पाषाण युग के लंबे फलक ,अर्ध चंद्राकार लघु पाषाण के औजार चित्रित शैलाश्रय के निकट प्राप्त हुए थे। जिसका उपयोग आदि मानव कंदमूल खोदने में या शिकार करने में पत्थर को नुकीले करके उपयोग में लाते थे।
- मध्य पाषाण काल को पुरातत्वविद 9 हजार ई पू से 4 हजार ई पू के बीच का मानते हैं।
- इस काल में ही आदिम मावन ने पशुओं को पालतू बनाना सीखा था। नव पाषाण काल का प्रमुख अविष्कार पहिया को माना जाता है।
- नदियों की घाटिया मानव की सर्वोत्तम आश्रय स्थल रही है। और ये छेत्र महानदी घाटी में आता है। वर्ष 1990 में जब मैंने इसे पहाड़ पर चढ़कर जब देखा था ,तो यहाँ कोई नाम लिखकर या वहा जाकर गुफा में तपस्या करने के नाम पर दीपक की कालिख से इन्हें बर्बाद कर रहा था।
- वैसे मुझे इस सम्बन्ध में स्व, श्री अनुपम दस गुप्ता जो की नवभारत समाचार पत्र के रायगढ़ में संवाददाता थे से ही ज्यादा जानकारी मिली थी। व उन्ही के मार्गदर्शन में मैं वहा पर गया भी था ।


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सारंगढ़ (रायगढ़) : गिरिविलास महल, तालाब (ऐतिहासिक, प्राकृतिक)
- सारंगढ़ एक प्रकार से बहुत बड़ा शहर है' क्योंकि इस सारंगढ़ तहसील में सबसे पहले राजाओं का शासन काल था और यहाँ बहुत अधिक सँख्या में जमीनें और शासनिक शक्ति था।
- माना गया है कि यहाँ बाबा घासीदास के ग्यान भूमि के नाम से भी जाना जाता है। तथा इस क्षेत्र पर सागोन पेड़ (बास) अधिक मात्रा में थे।
- जिले में पर्यावरन के नजर से रायगढ से 52 किमी दूर सारंगढ कि काली माता के मन्दिर,16 किमी दूर कोसिर के कोशलाई ,26 किमी दूर चन्दपुर के चन्दराहासिनी तथा टिमरलगा के नाथलदाई।
- जिला केंद्र से 52 किमी दूर स्थित हैं, यह अ॰जा॰ के लिए विधान सभा रिजर्व हैं।
- सारंगढ़ संतनामीयो के गढ़ हैं तथा समाज के प्रमुख लोग स्व भाईयाराम खुंटे पुर्व विधायक, स्व मनोहर दास, ग्यानदास जी हैं जिन्होने सन्त शिरोमणी बाबा गुरु घासीदास जी ग्यान स्थली को पूरे राज्य में ख्याति दिलाई।
- अभ्यारण्य- गोमर्डा अभ्यारण्य सारंगढ में स्थित हैा यहां प्रमुख रूप से वन भैंसा पाया जाता हैा
- सोनकुत्ता, बारहसिंहा, तेंदुआ, बरहा, उडन गिलहरी आदि भी पाए जाते हैंा घुमने का उपयुक्त समय सितम्बर से जून तक हैा 200 अभ्यारण्य धार्मिक स्थल - राष्ट्रीय राजमार्ग 153 से सालर 1.5कि.मी. की दूरी गांव- बैगिनडीह समीप माँ नवदुर्गा और माँ वैष्णवदेवी का मंदिर,साथ पास में ही घोराघाटी बांध निर्माणधीन है,घोराघाटी में ही मुनि डोंगरी एक दर्शनीय स्थल है।
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सिंघनपुर (रायगढ़)
- यह गुफा रायगढ़ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर तथा भूपदेवपुर रेलवे स्टेशन से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- गुफा लगभग 30 हजार साल पुराना है, इनकी खोज एंडरसन द्वारा 1910 में की गई थी। इंडिया पेंटिग्स 1918 में तथा इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के 13 वें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के शैलचित्रों का प्रकाशन पहली बार हुआ था। यहां पाषाणकालीन अवशेष पाये गए हैं।
- यहाँ विश्व की सबसे प्राचीनतम मानव शैलाश्रय स्थित है।
- यहां से छत्तीसगढ़ में प्राचीनतम मानव निवास के प्रमाण मिले हैं।
- यहां प्राप्त प्रागैतिहासिक कालीन तीन गुफाएं लगभग 300 मीटर लंबी तथा 7 फुट उंची है।
- इस गुफा के के बाहय दीवारों पर पशु एवं मानव की आकृतियां बनी हुई है, शिकार के दृश्य भी बने हुए हैं।
- देश में अब तक प्राप्त शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक मानव तथा नृत्यसांगना की चित्र केवल सिंघनपुर के शैलआश्रयों में प्राप्त है।

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छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल Archeology and tourist sites in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल Archeology and tourist sites in Chhattisgarh
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