छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ
Tribe Of Chhattisgarh
Tribe Of Chhattisgarh
परिचय
घने वनाच्छादित और प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में जनजातीय संस्कृति का पोषण -संवर्धन और उनकी मूल परिचयात्मक विशेषताओं के साथ उनके विकास कार्यक्रमों के संचालन की अपार संभावनाएं है । छत्तीसगढ़ की एक तिहाई जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है । मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र् ,उड़ीसा ,गुजरात , और झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ का जनजातियों की जनसंख्या के आधार पर छठे नम्बर पर आता है । जबकि कुल जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर छत्तीसगढ़ का मिजोरम,नागालैंड,मेघालय औरअरूणचल प्रदेश के बाद पांचवे स्थान पर है ।- 2011 की जनगणना के अनुसार छ.ग. राज्य में अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 78,22,902 है।
- प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग एक तिहाई जनसंख्या ( 30.62% )अनुसूचित जनजातियों की है।
- 2001 की जनगणना में राज्य की कुल जनसंख्या का 31.8% हिस्सा अनुसूचित जनजातियों का था।
- इस प्रकार 2001 के तुलना में 2011 में जनजातियों की जनसंख्या में कमी आई है।
- राज्य में कुल 42 अनुसूचित जनजातियाँ पायी जाती है।
- ये 42 अनुसूचित जनजातियाँ पुनः 161 उपसमूहों में विभाजित है।
- जनजाति संबंधित भारतीय संविधान प्रावधान अनुच्छेद 342 में है
- बस्तर को जनजातियों की भूमि कहा जाता है .
- सबसे बड़ी जनजाति समूह गोंड है
- आर्थिक द्रिष्टि से सबसे विकसित जनजाति हल्बा है
- सबसे पिछड़ी जनजाति अबुझमाड़िया है
- सबसे साक्षर जनजाति उरांव है
- सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जनजाति मुड़िया है
छ. ग. के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ
छग में मुख्यत 5 विशेष पिछड़ी जनजातिया थी जबकि 2012 में छग सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करके दो और जनजातियों भूंजिया व पंडो को इस श्रेणी में शामिल किया जिससे इनकी संख्या 7 हो गयी है।- बैगा ➨ कबीरधाम,बिलासपुर, कोरिया, राजनांदगाव,मुंगेली
- पण्डो ➨ सूरजपुर,बलरामपुर,सरगुजा
- कमार ➨ गरियाबंद,धमतरी,महासमुंद,कांकेर
- भुंजिया ➨ गरियाबंद,धमतरी
- बिरहोर ➨ रायगढ़,जशपुर, बिलासपुर,,कोरबा
- अबूझमाड़िया ➨ नारायणपुर,दंतेवाड़ा,बीजापुर
- पहाड़ी कोरवा ➨सरगुजा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर
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छ.ग. की प्रमुख जनजातियाँ
(Tribe Of Chhattisgarh)
गोंड जनजाति
- इनके मुख्य देवता ‘दूल्हा देव’ है।
- मुख्य सम्पर्क बोल : गोंडी
- महत्वपूर्ण वृक्ष : महुआ
- अमर श्रृंगारिक गहना : गोदना
- गोंड़ को उत्पत्ति : कोंड शब्द से
- गोंड़ जाति किस मूल के हैं : द्रविडियन
- इनका मोटे अनाज से बना पेय : पेज
- इनकी कृषि प्रथा डिप्पा कहलाती है।
- नृत्य व गायन उनका प्रमुख मनोरंजन है।
- मेघनाथ पर्व गोड़ जनजाति से संबंधित है.
- मुख्य गहना : पीतल, मोती, मूंगा आदि के आभूषण
- गोंड में दूध लौटावा विवाह भी देखने की मिलता है।
- गोंड जनजाति में मदिरापान का काफी ज्यादा प्रचलन है।
- इनमे विधवा तथा बहु विवाह का प्रचलन भी पाया जाता है।
- गोंड स्वयं को कठोर कहते हैं जिसका अर्थ होता है पर्वत वासी.
- जनसंख्या की दृष्टि से ये राज्य की सबसे बड़ी जनजाति समूह है।
- गोंडों के ममेरे-फुफेरे भाई बहनों जो विवाह को कहते हैं : दूध लौटावा
- प्रमुख विवाह : विधवा, वधु मूल्य , चढ़ एवम पठउनी विवाह प्रचलित है।
- प्रमुख नृत्य : सैला, करमा, बिरहा, भडोनी, कहरवा, सुआ, गेडी, अजनी आदि
- गोंड जनजाति स्वयम को कोयतोर कहते है जिसका अर्थ पर्वतवासी होता है
- आजीविका के साधन : कृषि , वनोपज संग्रह, पशुपालन, मुर्गीपालन, एवं मजदूरी
- प्रमुख देवता : बूढादेव , सुरजदेव, नारायणदेव, एवं बस्तर अंचल में दन्तेश्वरी देवी की पूजा
- प्रमुख त्यौहार : करमा, नवाखाई, बिदरी, बकपंथी, ज़वारा, मड़ई, हरदिली एवं घेरता आदि
- मुख्य व्यवसाय कृषि कार्य एवं लकड़हारे का कार्य करना है। इनमें ईमानदारी बहुत होती है।
- ये बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा,जांजगीर-चंपा और दुर्ग जिले में पाये जाते है।
- गोंड जनजाति की प्रमुख देवता दूल्हादेव है साथ ही बड़ा देव ,नाग देव, नारायण देव आदि को मानते हैं .
- गोंड की 41 उपजातियाँ है जिसमे से प्रधान, अगरिया, भरिया, मुड़िया, तथा डोरला छत्तीसगढ़ में निवास करती है
- बस्तर क्षेत्र की गोंड जनजातियां अपने सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती हैं।
- गोंड तथा उसकी उपजातिया स्वयं की पहचान ‘कोया’ या ‘कोयतोर शब्दों से करती है जिसका अर्थ ‘ मनुष्य’ या ‘पर्वतवासी मनुष्य’ है।
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बैगा जनजाति
- प्रमुख पेय पदार्थ ताडी है
- सर्वाधिक गोदना प्रिय जनजाति बैगा है .
- बैगा लोगों में संयुक्त परिवार की प्रथा पायी जाती है।
- इनमें मुकद्दम गाँव का मुखिया होता है।
- ‘बैगा’ का अर्थ होता है- “ओझा या शमन”।
- इस जाति के लोग झाड़-फूँक और अंध विश्वास जैसी परम्पराओं में विश्वास करते हैं।
- इस जाति का मुख्य व्यवसाय झूम खेती एवं शिकार करना है।
- इस जाति के लोग शेर को अपना अनुज मानते हैं।
- बैगा जनजाति गोंडो के पुजारी के रूप में कार्य करते हैं
- बैगा का प्रमुख देवता बुढादेव है जो साल वृक्ष में निवास करते हैं
- इनमें सेवा विवाह की ‘लामझेना’, ‘लामिया’ और ‘लमसेना’ प्रथा प्रचलित है।
- बैगा जनजाति के लोग पीतल, तांबे और एल्यूमीनियम के आभूषण पहनते हैं।
- इनका प्रमुख नृत्य करमा है किंतु साथ ही साथ विल्मा सैला परघौनी बैगानीदशहरा या बिलमा एवं फाग भी प्रचलित है
- बैगा जनजातियों का निवास मैकल पर्वत श्रेणी कवर्धा राजनांदगांव मुंगेली बिलासपुर जिले में है .
- भूमि की रक्षा के लिए ठाकुर देव की बीमारियों के रक्षा के लिए दूल्हा देव की पूजा करते हैं .
- इस जाति में ददरिया प्रेम पर आधारित नृत्य दशहरे पर एवं परधौनी लोक नृत्य विवाह के अवसर पर होता है।
- इस जनजाति की उपजातियों में ‘नरोतिया’, ‘भरोतिया’, ‘रायमैना’, ‘कंठमैना’ और ‘रेमैना’ आदि प्रमुख हैं।
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कोरवा जनजाति
- कोरवा जनजाति का निवास स्थान जशपुर सरगुजा सूरजपुर बलरामपुर रायगढ़ कोरिया जिले में है .
- इनके उपजाति में ‘ दिहारिया’ एवं ‘पहाड़ी कोरवा प्रमुख है।
- दिहारिया कोरबा कृषि कार्य करते है। इस कारण ‘किसान कोरबा भी कहा जाता है।
- पहाड़ी कोरबा को ‘बेनबरिया’ भी कहा जाता है।
- कोरवा जनजाति की अपनी पंचायत होती है। जिसे ‘मैयारी’ कहते है।
- कोरवा जनजाति का मुख्य त्योहार ‘करमा’ होता है।
- कोरवा जनजाति पेड़ों के ऊपर मचान बना कर रहते हैं
- यह लोग महादेव खुड़िया रानी सिंगिर देव की पूजा करते हैं .
- इनकी पंचायत को मयारी कहते हैं
- शरीर पर आग से दाग का निशान बनाते हैं जिस दरहा कहते हैं.
- क्रिया कर्म के समय कुमारी भात की परंपरा है
- विवाह के समय दमनंच नृत्य करते हैं.
- मृत संस्कार को नवाधावी कहते हैं
- इनका मुख्य पेय पदार्थ होता है हडीया
अबूझमाड़िया
- इनकी कृषि पद्धति पेद्दा है.
- अबूझमाड़िया का अर्थ होता है अज्ञात..
- अबूझमाड़िया गोंड जनजाति की उपजाति है .
- अबूझ मारिया को मेताभुम के नाम से भी जाना जाता है.
- अबूझमाडिया मुख्य रूप से नारायणपुर एवं बीजापुर जिले में निवास करते हैं .
माड़िया जनजाति
- माड़िया जनजाति इन्हें बाइसनहार्न कहते हैं .
- यह जनजाति मुख्यता बस्तर क्षेत्र में निवास करते हैं .
- जात्रा पर्व के दौरान यह जनजाति भैंस के सिर को टोपी बनाकर नृत्य करते हैं इसे बाइसनहार्न नृत्य या गौर नृत्य कहते हैं .
- माड़िया के उपशाखा दंडवी माड़िया द्वारा भी यह नृत्य किया जाता है.
- इस प्रजाति के लोग जंगल में एक पृथक झोपड़ी बनाकर रहते हैं जिसे सिहारी कहा जाता है .
- इनका पेय पदार्थ सल्फी है.
- मारिया की उपजाति अबुझमाड़िया है ,जो कि शासन द्वारा घोषित पिछड़ी जनजाति है.
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मुडिया /मुरिया जनजाति
- मुरिया गोड़ों की एक उपजाति है .
- यह गुड शब्द से विकसित हुआ है. जिसका अर्थ पलाशवृक्ष है किंतु शाब्दिक दृष्टि से मुरिया का अर्थ आदिम होता है.
- इनका मुख्य संकेंद्रण कोंडागांव एवं नारायणपुर क्षेत्र में है
- इन्हें तीन उपविभागों में बाँटा जा सकता है। यथा- राजा मुरिया, झोरिया मुरिया तथा घोटुल मुरिया।
- यह लोग ठाकुर देव महादेव की पूजा करते हैं .
- इनका युवागृह घोटूल है जिसका विशेष सामाजिक महत्व है .
- इस जनजाति के ककसार, मांदरी, गेंड़ी नृत्य अपनी गीतात्मक, अत्यंत कोमल संरचनाओं और सुन्दर कलात्मक विन्यास के लिए प्रख्यात है।
- मुरिया जनजाति में आओपाटा के रूप में एक आदिम शिकार नृत्य-नाटिका का प्रचल न भी है
- ककसार धार्मिक नृत्य-गीत है। नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां बांधे रहते है
- गाय, बैल, बकरी, मुर्गी पालना इनका शौक है। ये सब्जी भी उगाते है।
- साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर वे नृत्य करते है।
कमार जनजाति
- कमार जनजातियों का निवास गरियाबंद जिले में बिंद्रा नवागढ़ देवभोग तहसीलों में एवं आंशिक रूप से धमतरी जिले में पाई जाती है .
- इनका मुख्य देवता ” दूल्हा देव” है।
- ये अधिकतर कृषि मजदुर के रूप में खेतो में काम करते है।
- ये लकड़ी और बांस की चीजें बनाने में निपुण होते है।
- सर्वाधिक गोदना गोदवाने वाले जनजाति कमार होते हैं .
- कमार जनजाति की पंचायत प्रधान कुरहा कहलाता है
- घोड़ा छूना निषेध .
- घर में मृत्यु होने पर घर का त्याग कर देते हैं
- कमार जनजाति के दो उपजाति हैं - 1)बुधरजियाये 2)पहाडपाटिया
- बुधरजियाये बंदर मांस नहीं खाते जबकि मकडीया बन्दर मांस खाते हैं.
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उराव जनजाति
- मुख्य रूप से सरगुजा बलरामपुर जशपुर रायगढ़ क्षेत्र में निवास करती है.
- उराव जनजाति की युवा गृह धुमकूरिया है जिसके मुख्या को धौंगरगहतो कहते हैं .
- इनके नाम पशुओं, पक्षियों, मछली,पौधों तथा वृक्षों के नाम पर रखे जाते है।
- सर्वाधिक शिक्षित जनजाति उराव जनजाति है .
- इनमे लड़के लड़कियां विवाह से पूर्व स्वच्छन्द रहते है।
- इनमे तलाक,विधवा एवं बहु विवाह का भी प्रचलन है।
- ओरांव के प्रमुख देवता ” धर्मेश ” है, जो सूर्य देवता का ही रूप है।
- सरगुजा क्षेत्र में निवासरत प्रमुख जनजाति है .
- सर्वाधिक धर्मांतरण उराव जनजाति किया हुआ है
- उराव जनजाति की मुख्य देवता सरना देवी है .
- उराव जनजाति द्वारा साल वृक्ष में फूल लगने के उपलक्ष्य में सरहुल नृत्य करते हैं .
- उराव जनजाति की प्रमुख बोली कुरुख है .
- यह जनजाति सरहुल नृत्य के साथ ही साथ करमा नृत्य करते हैं .
- विरन गीत करमा गीत का हिस्सा है
- गांव के प्रमुख मांझी कहलाती है .
- प्रमुख पर्व खट्टी सरहुल एवं भाग है एवं पारंपरिक पोशाक करेया है.
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विरहोर
- बिरहोर जनजाति का निवास मुख्यतः रायगढ़ जशपुर जिले में है.
- बिरहोर जनजाति पर द बिरहोर एस.सी.राय की रचना है .
- बिरहोर का सामान्य अर्थ होता है वनचर .
हल्बा जनजाति
- ये बस्तर,रायपुर, कोंडागांव,कांकेर,सुकमा, दंतेवाड़ा एवं दुर्ग जिले में निवास करते है।
- इनकी उपजातियों में बस्तरिया,भतेथिया,छत्तीसगढ़िया आदि मुख्य है।
- हलवाहक होने के कारण इस जनजाति का नाम हल्बा पड़ा है।
- बस्तरहा, छत्तीसगढ़ीयां तथा मरेथियां, हल्बाओं की शाखाएँ हैं।
- मरेथियाँ अर्थात् हल्बाओं की बोली पर मराठी प्रभाव दिखता है।
- कुछ हल्बा कबीर पंथी हो गए हैं।
- अधिकांश हल्बा लोग शिक्षित होकर शासन में ऊँचे-ऊँचे पदों पर पहुँच गये हैं,
- अन्य समाजों के सम्पर्क में आकर इनके रीति-रिवाजों में भी पर्याप्त परिवर्तन हुआ है।
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कंवर जनजाति
- ये बिलासपुर,रायपुर,रायगढ़,जंगीर-चाम्पा एवं सरगुजा ज़िलों में पाये जाते है।
- ये लोग अपनी उत्पत्ति महाभारत के कौरव से बताते है।
- इनमे संगोत्री विवाह और विधवा विवाह वर्जित है।
- “सगराखंड” इनकी प्रमुख देवता है।
- ये कृषक एवं कृषक मजदुर है।
- इनमे संगोत्री विवाह और विधवा विवाह वर्जित है।
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भुंजिया
- राज्य सरकार द्वारा भूंजा जनजाति के विकास के लिए भुंजिया विकास अधिकरण संचालित किया जा रहा है .
- भुंजिया जनजाति के लोग रोग का इलाज तपते लोहों से दागकर करते हैं .
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पारधी
- पारधी जनजाति अपना जीवकोपार्जन आखेट द्वारा करती है.
- मुख्य तौर पर सरगुजा रायगढ़ और कोरबा क्षेत्र में निवास करती है .
- यह जनजाति काले पक्षियों शिकार करते हैं .
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कोरकू जनजाति
- ये रायगढ़,सरगुजा,बलरामपुर और जशपुर जिलो में निवास करते है।
- उसका शाब्दिक अर्थ जमीन खोदने वाला होता है
- इनका प्रमुख नृत्य थापडी नृत्य है
- कोरकू जनजाति द्वारा आषाढ़ माह में ढाढल नृत्य करते हैं
- मोवासी, बवारी, रूमा, नहाला, बोडोया आदि इनकी उपजातियां है।
- इस जनजाति में विवाह संबंध में वधु-धन चुकाना पड़ता है।
- इनमे तलाक़ प्रथा एवं विधवा विवाह का भी प्रचलन है।
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बिंझवार जनजाति
- ये बिलासपुर,रायपुर,बलौदा बाजार (सोनाखान) जिले में निवास करते है।
- ये “विन्ध्याचल वासिनी देवी” की पूजा करते है।
- बिंझवार जनजाति की चिन्ह तीर है
- बिंझवार जनजाति में तीर विवाह प्रचलित है .
- ये अपने को विंध्यवासिनी पुत्र “बारह भाई बेतकर” को अपना पूर्वज मानते है।
- विन्ध्य पर्वत के मूल निवासी होने के कारण बिंझवार बोलते हैं
- इनकी मुख्य भाषा छत्तीसगढ़ी साथ ही यह लोक शबरी गोली का प्रयोग करते हैं.
- इनके महासभा को कोटा सागर करते हैं. यह विंध्यवासिनी देवी की पूजा करते हैं.
- सोनाखान बलोदा बाजार के वीर पुत्र शहीद वीर नारायण सिंह इसी जनजाति से संबंध थे.
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कोया/दोरला/कोयतुर
- यह मुख्य बस्तर सुकमा अंचल में निवास करता है.
- यह गोंड की उपजाति है यह गोदावरी अंचल में निवास करती है .
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खैरवार जनजाति
- ये सरगुजा,सूरजपुर,बलरामपुर तथा बिलासपुर जिले में पाये जाते है।
- इन्हे कथवार भी कहा जाता है।
- कत्था का व्यवसाय करने के कारण इस जनजाति का यह नाम पड़ा है।
- विरहोर समूह के लोग स्वयं को खैरवान की ही एक उपशाखा मानते हैं।
- इस जाति के लोग अपना मूल स्थान 'खरियागढ़' (कैमूर पहाड़ियाँ) को मानते हैं, जहाँ से वे हज़ारीबाग़ ज़िले तक पहुँचे थे।
- खैरवार स्वयं को अभिजात्य वर्ग का मानते हैं और 'जनेऊ' धारण करते हैं।
- दरअसल अपने विस्तृत वितरण क्षेत्र में खैरवारों के जीवन-स्तर में भारी अंतर देखने को मिलता है,
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भैना जनजाति
- सतपुड़ा पर्वतमाला एवं छोटानागपुर पठार के बीच सधन वन क्षेत्र के मध्य बिलासपुर, जांजगीर चाम्पा, रायगढ़,रायपुर,बस्तर जिलो में पाये जाते है।
- यह बैगा व कवर का मिश्रित प्रजाति है.
- इस जनजाति की उत्पत्ति मिश्र संबंधो के कारण हुआ प्रतीत होता है।
- किंवदन्ती के अनुसार ये ” बैगा और कंवर ” की वर्ण संकर संताने है।
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भतरा
- भतरा का अर्थ है सेवक .भतरा जनजाति द्वारा शिकर देवी की पूजा करते हैं .
- जिसे माती देव के नाम से भी जाना जाता है .
- यह जनजाति उड़ीसा के बोली भतरी का प्रयोग करते हैं .
- यह जानते हैं कि चौदहवीं शताब्दी में काकतीय वंश के संस्थापक राजा अन्नमदेव के साथ वारंगल से बस्तर आए थे.
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सौरा
- सौरा जनजाति रायगढ़ महासमुंद क्षेत्र में निवास करती है .
- सौरा जनजाति अपने आपको शबरी की पूर्वज मानते हैं .यह सांप पकड़ने का काम करते हैं .
पंडो
- यह मुख्यता सरगुजा अंचल में निवास करती है.
- राज्य सरकार द्वारा पंडो जनजाति के लिए पंडो विकास अधिकरण संचालित है .
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छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ | Tribe of Chhattisgarh |=======================================
नोट - इस पेज पर आगे और भी जानकारियां अपडेट की जायेगी, उपरोक्त
जानकारियों के संकलन में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है फिर भी किसी प्रकार
की त्रुटि अथवा संदेह की स्थिति में स्वयं किताबों में खोजें तथा
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