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Sarguja Jila By-Ful Verma

छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल 
Part (1)
Archeology and tourist sites in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ पर्यटन स्थल 

  • भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ में समृद्ध सांस्कृतिक पंरपरा और आकर्षक प्राकृतिक विविधता है।
  • राज्य में प्राचीन स्मारक, दुर्लभ वन्यजीव, नक़्क़ाशीदार मंदिर, बौद्धस्थल, महल जल-प्रपात, पर्वतीय पठार, रॉक पेंटिंग और गुफाएं हैं।
    बस्तर अपनी अनोखी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान के साथ पर्यटकों को एक नई ताजगी प्रदान करता हो।
  • बिलासपुर में रतनपुर का महामाया मंदिर, डूंगरगढ में बंबलेश्वरी देवी मंदिर, दन्तेवाड़ा में दंतेश्वरी देवी मंदिर और छठी से दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा सिरपुर भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं।
  • महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थान चंपारण, खूटाघाट जल प्रपात, मल्लाहार में डिंडनेश्वरी देवी मंदिर, अचानकमार अभयारण्य, रायपुर के पास उदंति अभयारण्य, कोरबा ज़िले में पाली और कंडई जल प्रपात भी पर्यटकों के मनपसंद स्थल हैं।
  • खरोड जंजगीर चंपा का साबरी मंदिर, शिवरीनारायण का नरनारायण मंदिर, रजिम का राजीव लोचन और कुलेश्वर मंदिर, सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर और जंजगीर का विष्णु मंदिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हैं।

सरगुजा जिला के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल


रामगढ (सरगुजा)

रामगढ़ पहाड़ी

  • रामगढ़ सरगुजा के ऐतिहासिक स्थलो में सबसे प्राचीन है।
  • उदयपुर के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 130 बिलासपुर-अंबिकापुर से लगा हुआ रामगढ़ का पहाड़ है। 
  • इसे रामगिरि भी कहा जाता है, रामगढ पर्वत टोपी की आकृति का है। 
  • इसे रामगिरि भी कहा जाता है, रामगढ पर्वत HAT (टोपी) की सकल का है। 
  • रामगढ भगवान राम एवं महाकवि कालीदास से सम्बन्धित होने के कारण शोध का केन्द्र बना हुआ है। 
  • एक प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास काल मे निवास किए थे. यहीं पर राम के तापस वेश के कारण जोगीमारा, सीता के नाम पर सीता बेंगरा एवं लक्ष्मण के नाम पर लक्ष्मण गुफा भी स्थित है।
  • कहते हैं, यह महाकवि कालिदास के मेघदूत में वर्णित वही रामगिरि पर्वत है, जहाँ उन्होंने बैठकर अपनी कृति मेघदूत की रचना की थी।
  • मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद मुकुटधर पाण्डेय के द्वारा किया गया है। 
  • इनकी खोज कर्नल आउसले ने की। 
  • यहाँ पर विश्व की प्राचीनतम गुफा नाट्य शाला स्थित है. इसे रामगढ नाट्य शाला कहा जाता है।

यहां से निकलती है चन्दन मिट्टी

  • रामगढ़ की पहाड़ी में चंदन गुफा भी है। यहां से लोग चंदन मिट्टी निकालते हैं और उसका उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है। 
  • इतिहासविद रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं। 
  • एक अन्य मान्यता के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजा भोज से नाराज हो उज्जयिनी का परित्याग किया था, तब उन्होंने यहीं शरण ली थी और महाकाव्य मेघदूत की रचना इन्हीं पहाड़ियों पर बैठकर की थी।

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सीताबोगरा (सरगुजा)

                                                                              सीताबोगरा (सरगुजा)

  •  विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में विख्यात जो रामगढ़ के पहाड़ी में स्थित है।
  • अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली यह गुफ़ा देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है।
  • सीताबेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है।
  •  यह गुफ़ा प्रसिद्ध जोगीमारा गुफ़ा के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। 
  •  माना जाता है कि यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। 
  •  इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। 
  • ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था।

इतिहास

  • रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू. होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। 
  • सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना 'मेघदूत' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। कालीदास की रचना 'मेघदूत' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।

संचालन

  • यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी 'सुतनुका देवदासी' के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। 
  • देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे।

स्थापत्य

  • सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। 
  • यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। 
  • गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। 
  • सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। 
  • प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। 
  • इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके।
  • गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। 
  • मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। 
  • इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे 'हथफोड़ सुरंग' के नाम से जाना जाता है। 
  • इसकी लंबाई क़रीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित किया गया है।

अभिलेख

  • सीताबेंगरा गुफ़ा के ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए अभिलेख का आशय है-   
          हृदय को देदीप्यमान करते हैं स्वभाव से महान् ऐसे कविगण    
         रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने 
         को भुलाकर चमेली के फूलों की माला का आलिंगन करता है। 
  • दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि 'मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में नृत्य, संगीत, हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।'

बादलों की पूजा

  • सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना 'मेघदूत' यहीं लिखी थी। 
  • कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। 
  • भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। 
  • इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। 
  • इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।

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जोगीमारा गुफा (सरगुजा) -

  • इसे छ.ग. की अजन्ता के रूप में विख्यात, मौर्यकालीन गुफा चित्र के लिए जाना जाता है।
  • एँ अम्बिकापुर (सरगुजा ज़िला) से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ स्थान में स्थित है।
  •  यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं।
  • इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर विभिन्न चित्र अंकित हैं। ये शैलकृत गुफ़ाएँ हैं, जिनमें 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं।
  • इस गुफा में ब्राह्मी लिपि का अभिलेख है। 
  • इस गुफा में देवदासी सुतलुका के चित्र है। 
  • जोगीमारा गुफा (सरगुजा)
  • इस गुफा की खोज कर्नल आउस्ले नें किया था। 



निर्माण काल

  • चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर निश्चित किया है।
  • सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था।
  • ऐसा माना जाता है कि जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं।
  • विश्वास किया जाता है कि देवदासी सुतनुका ने इन भित्तिचित्रों का निर्माण करवाया था।

चित्रों की विषयवस्तु

  • चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है।
  • एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है।
  • यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। चित्रित विषय सुन्दर है तथा तत्कालीन समाज के मनोविनोद को दिग्दर्शित करते हैं।
  • इन गुफ़ाओं का सर्वप्रथम अध्ययन असित कुमार हलधर एवं समरेन्द्रनाथ गुप्ता ने 1914 में किया था।

प्रस्तुतिकरण

  • जोगीमारा गुफ़ाओं के समीप ही सीताबेंगरा गुफ़ा है।
  • इस गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है।
  • कहा जाता है कि यह एशिया की अतिप्राचीन नाट्यशाला है।
  • भास के नाटकों के समय निर्धारण में यह पुराता देवदीन पर प्रेमासक्तत्त्विक खोज महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
  • क्योंकि नाटक प्रविधि को 'भास' ने लिखा था तथा उसके नाटकों में चित्रशालाओं के भी सन्दर्भ दिये हैं।
  • यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी सुतनुका देवदासी के हाथ में था।
  • यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा।
  • रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित करा दिया। 

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मैनपाट (सरगुजा)

  • मैनपाट अम्बिकापुर से 75 किलोमीटर दुरी पर है इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है।
  • इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1084 मीटर है। यहां पर कई दर्शनीय स्थल हैं। 
  • मेहता प्वाइंट, टाइगर प्वाइंट, ईको प्वाइंट तथा फिस प्वाइंट यही पर स्थित है। 
  • यहां पर आलू अनुसंधान केन्द्र स्थित है। 
  • मैनपाट में ही 1961 में भारत नें तिब्बत शरणार्थियों को बसाया था। 
  • छ.ग. शासन की पुलिस एकेडमी खोलनें का प्रस्ताव है। 
  • प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर यह एक सुन्दर स्थान है। यहां सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट तथा मछली प्वांइट प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। 
  • शरभंजा जलप्रपात यहीं पर है। मैनपाट से ही मांडनदी का उद्गम होता है। 
  • यहीं से मतिरिंगा पहाड़ी से रिहंद नदी का उद्गम होता है।
  • यह कालीन और पामेरियन कुत्तो के लिये प्रसिद्ध है।
Ful Verma

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महेशपुर में शिव मंदिरमहेश्पुर

  • महेश्पुर, उदयपुर से उत्तरी दिशा में 08 किमी. की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से केदमा मार्ग पर जाना पड्ता है। 
  • इसके दर्शनीय स्थल प्राचीन शिव मंदिर (दसवीं शताब्दी), छेरिका देउर के विष्णु मंदिर (10वीं शताब्दी), तीर्थकर वृषभ नाथ प्रतीमा (8वीं शताब्दी), सिंहासन पर विराजमन तपस्वी, भगवान विष्णु-लक्ष्मी मूर्ति, नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप को चीरना, मुंड टीला (प्रहलाद को गोद मे लिए), स्कंधमाता, गंगा-जमुना की मूर्तिया, दर्पण देखती नायिका और 18 वाक्यो का शिलालेख हैं।

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देवगढ़

  • अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किमी. की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किमी. की दूरी पर देवगढ स्थित है। 
  • देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है। 
  • इस शिवलिंग के मध्यभाग पर शक्ति स्वरुप पार्वती जी नारी रूप में अंकित है। 
  • इस शिवलिंग को शास्त्रो में अर्द्ध नारीश्वर की उपाधि दी गई है। 
  • इसे गौरी शंकर मंदिर भी कहते है। 
  • देवगढ में रेणुका नदी के किनारे एकाद्श रुद्ध मंदिरों के भग्नावशेष बिखरे पडे है। 
  • देवगढ में गोल्फी मठ की संरचना शैव संप्रदाय से संबंधित मानी जाती है। 
  • इसके दर्शनीय स्थल, मंदिरो के भग्नावशेष, गौरी शंकर मंदिर, आयताकार भूगत शैली शिव मंदिर, गोल्फी मठ, पुरातात्विक कलात्मक मूर्तियां एवं प्राकृतिक सौंदर्य है।
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कैलाश गुफाकैलाश गुफा

  • अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। 
  • इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी नें पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है। 
  • महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। 
  • इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरू आश्रम है।

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ठिनठिनी पत्थर

दारिमा में टिन टिनी पत्थर
  • अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। 
  • दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे – बडे पत्थरो का समुह है। 
  • इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी – किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। 
  • इस पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है। 
  • एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। 
  • इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।

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सेदम जल प्रपात

  • अम्बिकापुर- रायगढ मार्ग पर अम्बिकापुर से 45 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में दो कि॰मी॰ की दूरी पर पहाडियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। इस झरना के गिरने वाले स्थान पर एक जल कुंड निर्मित है। 
  • यहां पर एक शिव मंदिर भी है। शिवरात्री पर सेदम गांव में मेला लगता है। 
  • इस झरना को राम झरना के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर्यटक वर्ष भर जाते हैं।

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लक्ष्मणगढ

  • अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणगढ स्थित है। यह स्थान अम्बिकापुर – बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है। 
  • ऐसा माना जाता है कि इसका नाम वनवास काल में श्री लक्ष्मण जी के ठहरने के कारण पडा। 
  • य़ह स्थान रामगढ के निकट ही स्थित है। 
  • यहां के दर्शनीय स्थल शिवलिंग (लगभग 2 फिट), कमल पुष्प, गजराज सेवित लक्ष्मी जी, प्रस्तर खंड शिलापाट पर कृष्ण जन्म और प्रस्तर खंडो पर उत्कीर्ण अनेक कलाकृतिय़ां है।




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महामाया मन्दिर

  • सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। 
  • इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। 
  • एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है।
  • इस मन्दिर का निर्माण महामाया रघुनाथ शरण सिहं देव ने कराया था। 
  • चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते है।

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तकिया

  • अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं और मन्नते मांगते है बाबा मुरादशाह अपने “मुराद” शाह नाम के अनुसार सबकी मुरादे पूरी करते हैं। 
  • इसी मजार के पास ही एक देवी का भी स्थान है इस प्रकार इस स्थान पर हिन्दू देवी देवता और मजार का एक ही स्थान पर होना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

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